Facts & History: हमारी दुनिया मे यू तो बहुत से मंदिर है जहां की बहुत मान्यता है, और अक्सर कई लोगो का मानना है कि इन मंदिरों मे जाकर जो माँगो वो मिल जाता है। वही आज हम आपको एक ऐसे मंदिर के बारे मे बताने जा रहे है जिसे हैंगिंग पिलर के नाम से भी जाना जाता है और क्यों, यह भी बतायेंगे। उस मंदिर को वीरभद्र मंदिर (या लेपाक्षी मंदिर) के नाम से जाना जाता है। आंध्रप्रदेश में स्थित लेपाक्षी मंदिर में भगवान शिवजी के वीरभद्र रूप की पूजा की जाती है।

कुर्मासेलम की पहाडियों पर बना ये मंदिर कछुए की आकार में बना है। कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण विरुपन्ना और विरन्ना नाम के दो भाइयों ने 16वीं सदी में कराया था, जो विजयनगर के राजा के यहां काम करते थे। हालांकि पौराणिक मान्यता है कि इस मंदिर को ऋषि अगस्त्य ने बनवाया था। मान्यताओं के अनुसार, इस मंदिर का जिक्र रामायण में भी मिलता है और ये वही जगह है, जहां जटायु रावण से युद्ध करने के बाद जख्मी होकर गिर गये थे और राम को रावण का पता बताया था। मंदिर में एक बड़ा सा पैर का निशान भी है, जिसे त्रेता युग का गवाह माना जाता है। कोई इसे भगवान राम के पैर का निशान तो कोई माता सीता के पैर का निशान मानते हैं।
आपको जानकार शायद हैरानी हो, मंदिर में कुल 70 खंबे हैं, जो जमीन से बिल्कुल भी जुड़े हुए नहीं है। खंभा हवा में ही लटके रहते है, यहां आने वाला हर व्यक्ति टेस्ट करने के लिए खंबे के नीचे कपड़ा डालकर जरूर देखता है। लेपाक्षी मंदिर को आकाश स्तंभ के नाम से भी जाना जाता है। ये खंबे जमीन से आधा इंच ऊपर उठा हुआ है।

1924 में, एक ब्रिटिश इंजीनियर हैमिल्टन ने ‘रहस्य’ का पता लगाने के लिए स्तंभ को हिलाने की कोशिश की। ऐसा करते समय 10 और खंभे साथ में हिलने लगे। इस डर से कि पूरी संरचना ढह सकती है, उसने तुरंत अपने प्रयास को वही रोक दिया। बाद में, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने अच्छे से जांच की और साबित किया कि स्तंभ का निर्माण गलती के रूप में नहीं किया गया था, बल्कि उस समय के बिल्डरों की प्रतिभा को साबित करने के लिए जानबूझकर बनाया गया था।