इस दुनिया मे आज तक कई लोग माउंट एवरेस्ट पर चढ़ चुके है, जिसकी उचाई है 8849 मीटर। वही कैलाश पर्वत जिसकी उचाई है 6638 मीटर पर कोई नहीं चढ़ पाया। आइए जानते है क्यों, हिंदू शास्त्रों में भगवान शिव (Lord Shiva) को कैलाश पर्वत (Kailash Mountain) का स्वामी माना जाता है।मान्यता है कि महादेव अपने पूरे परिवार और अन्य समस्त देवताओं के साथ कैलाश में रहते हैं। दरअसल पौराणिक कथाओं में ऐसी कई घटनाओं के बारे में बताया गया है जिनमें कई बार असुरों और नकारात्मक शक्तियों ने कैलाश पर्वत पर चढ़ाई करके इसे भगवान शिव से छीनने का प्रयास किया, लेकिन उनकी मंशा कभी पूरी नहीं हो सकी। आज भी यह बात उतनी ही सच है जितनी पौराणिक काल में थी।
कैलाश पर्वत पर व्यक्ति दिशाहीन हो जाता है
कैलाश पर्वत पर कभी किसी के नहीं चढ़ पाने के पीछे कई कहानियां भी प्रचलित हैं। कुछ लोगों का मानना है कि कैलाश पर्वत पर भगवान शिव अपने परिवार के साथ रहते हैं और इसीलिए कोई जीवित इंसान वहां ऊपर नहीं पहुंच सकता। मरने के बाद या जिसने कभी भी कोई पाप न किया हो, केवल वही कैलाश फतह कर सकता है। ऐसा भी माना जाता है कि कैलाश पर्वत पर थोड़ा सा ऊपर चढ़ते ही व्यक्ति दिशाहीन हो जाता है। बिना दिशा के चढ़ाई करना मतलब मौत को दावत देना है, इसलिए कोई भी इंसान आज तक कैलाश पर्वत पर नहीं चढ़ पाया है।

माउंट कैलाश को शिव पिरामिड भी कहा जाता है
सन 1999 में रूस के वैज्ञानिकों की टीम एक महीने तक कैलाश पर्वत के नीचे रही और इसके आकार के बारे में शोध करती रही। वैज्ञानिकों ने कहा कि इस पहाड़ की तिकोने आकार की चोटी प्राकृतिक नहीं, बल्कि एक पिरामिड है जो बर्फ से ढकी रहती है। यही कारण है कि माउंट कैलाश को शिव पिरामिड के नाम से भी जाना जाता है। जो भी इस पहाड़ को चढ़ने निकला, या तो मारा गया, या बिना चढ़े वापस लौट आया।
शरीर के बाल और नाखून तेजी से बढ़ने लगते हैं
चीन सरकार के कहने पर कुछ पर्वतारोहियों का दल कैलाश पर चढ़ने का प्रयास कर चुका है। लेकिन उन्हें भी सफलता नहीं मिली और पूरी दुनिया के विरोध का सामना अलग से करना पड़ा। हारकर चीनी सरकार को इस पर चढ़ाई करने से रोक लगानी पड़ी। कहते हैं जो भी इस पहाड़ पर चढ़ने की कोशिश करता है, वो आगे नहीं चढ़ पाता, उसका हृदय परिवर्तन हो जाता है। यहां की हवा में कुछ अलग बात है। शरीर के बाल और नाखून 2 दिन में ही इतने बढ़ जाते हैं, जितने 2 हफ्ते में बढ़ने चाहिए। शरीर मुरझाने लगता है। चेहरे पर बुढ़ापा नजर आने लगता है, मानो वक़्त बहुत तेज़ी से चल रहा हो।
पूरी टीम के सिर में भयंकर दर्द होने लगा था
चीन ही नहीं रूस भी कैलाश के आगे अपने घुटने टेक चुका है। सन 2007 में रूसी पर्वतारोही सर्गे सिस्टिकोव ने अपनी टीम के साथ माउंट कैलास पर चढ़ने की कोशिश की थी। सर्गे ने अपना खुद का अनुभव बताते हुए कहा था कि कुछ दूर चढ़ने पर उनकी और पूरी टीम के सिर में भयंकर दर्द होने लगा। फिर उनके पैरों ने जवाब दे दिया, उनके जबड़े की मांसपेशियां खिंचने लगीं और जीभ जम गई। मुंह से आवाज़ निकलना बंद हो गई। चढ़ते हुए मुझे महसूस हुआ कि वह इस पर्वत पर चढ़ने लायक नहीं हैं। उन्होंने फौरन मुड़कर उतरना शुरू कर दिया. तब जाकर उन्हें आराम मिला।
कैलाश पर्वत के चारों ओर परिक्रमा
आपको बता दें कि 29 हजार फीट ऊंचा होने के बाद भी एवरेस्ट पर चढ़ना तकनीकी रूप से आसान है। मगर कैलाश पर्वत पर चढ़ने का कोई रास्ता नहीं है। चारों ओर खड़ी चट्टानों और हिमखंडों से बने कैलाश पर्वत तक पहुंचने का कोई रास्ता ही नहीं है। ऐसी मुश्किल चट्टानें चढ़ने में बड़े-से-बड़ा पर्वतारोही भी अपने घुटने टेक देता है। हर साल लाखों लोग कैलाश पर्वत के चारों ओर परिक्रमा लगाने आते हैं। रास्ते में मानसरोवर झील के दर्शन भी करते हैं, लेकिन कैलाश पर्वत पर चढ़ाई न कर पाने की बात आज तक रहस्य बनी हुई है।